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[१९१४] अंधाfts सलु वि वंभंडु
सुरि चरण- निबु जग मोह नरिंद- सुय इय तियसासुर - समण-सय जय-मुहयरि सिरि-वीर जिणि
सुरसम्म आवंतु गोयमु जिणह तियसासुर - नहयर - तरुणि दीहर- सासिहि मंसलिउ
नेमिनाgafts
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[१९१५]
एत्थ - अंतरि सामि वयणेण
भणह करिव धम्मि पडिवोहु निम्मलु | सविहि सुणइ मग्गे विकसमल || निवडु नहिण गच्छंतु । अइ- सकरुणु पलवंतु ॥
गय-दिणयरु वासरु व तोडिय-फलु तरुवरु व जाउं भुवणु अ-सेसु इहु पेक्त व सुरासुरहं
[१९१६]
अहह रयणि व गलिय-ससि-विव
तयणु
किमु सामिउ अत्थमिउ इय गोयमु चिंतयरु सुद्ध-धरायलि अह खणिण इंदभूइ उत्तम्मिउण
१९१४. ७. क. सोयहं.
दलिय दप्प धम्म- यण- माणस । राय-दोस परिभमहि स-हरिस || सोहि डर स- चित्ति | सिव-नयरम्मि पहुत्ति ॥
सुसिय-सलिल माणस - सरं पिव । खलिय- सील मुणि-मंडलं पिव ॥ वीर जिणिंद-विओइ । वंधव जोइन जोइ ॥
[१९१७] किं एहु भणर्हि सुर-असुर
[ १९१४
अव अ-सिवु किं किं-पि जाय । जाय - हियय-संघट्ट पडियउ || संपाविय चेयन्तु । चितर मुहिण विवन्तु ॥
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