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१९१३ ]
सत्तमभवि संखघुत्तंति महावीरचरिउ
[१९१०] लहु जलंजलि दिन रोगाहं परितु संघु मणि भयवंतु वि नाग-रवि
हरिस - विवस हुय तियस - तरुणि वि । विवि-पुरि चिरकाल विहरिवि ।। नयरिहिं हय-जय-रोसु ।
पत्तु अपावा - नामियहं
ता विरइउ तियसासुरिहिं समवसरणु कय-तोसु ॥
[१९११]
तत्थ निवसिवि नाहु वित्थरिण तियसासुर नर - सह काल चक्कु सयलु वि परुवइ । सुरसम्मह दिय-वरह वोह - हेउ गोयमु पठाव || तीस-दुवालस-सेस जुय - गिहि छउमत्थते वि । किंचूणय- तीसइ वरिस केवल - नाणु धरेवि ॥
[१९१२]
सव्व - आउय-कम्मु पालेवि
वाहत्तरि वरिस - परिमाणु तयणु कत्तियह मासह | साइयहि अमावस
संपत्तउ छट्टिण तविण
इंद- मुहु समग्गु ।
लाइव सिव- हि मुणि-समणि - सावय-साविय-वगु ॥
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नाग-करण पहु सिद्धि-वासह ॥
[१९१३]
तयणु सयलु वि अंत-कायव्वु
विहिउ तत्थ जह-जोग्गु नाहह |
aियसासुर-नरवsहिं तयणंतरू मन्नु-भर- भरिय नयण परिचुक्क लाह ॥ जाय दु-सहइ पहु विरहि गरुय- दुहाणल- तत्त । पुरविर भुवण-पहु दुलहउ इय चिंतंत ॥
१९१२. ३. क. सायइहिं, ख. साईहि.
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જીવ
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