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१२२]
पढमभवि धणवुतंतु
[११९]
अह पुर-ट्ठिय गमिर साणंद मण-वेगिण पउर-वल- कलिय चलिय नरनाह-बालिय । कुंदुज्जल-विउल-गुण- रयण-कित्ति-पसरिण-विसालिय ।। पमुइय नरवइ-सचिव-वणि- तरुणि-तरुण-नर-विसरि । थोवेहिं पि पयाणगिहिं पत्त अयलपुर-नयरि ॥
[१२०
तयणु विक्कमधण-नरिंदेण आणंद-समुल्लसिय- रेम-राइ-रेहंत-दिहिण । परिओसिय-धरणियल- वट्टमाण-नर-तरुणि-निवहिण ॥ तकालागय-सयल-महि- लोय-विहिय-उच्छाहु । काराविउ गुरु-वित्थरिण धण-धणवइहिं विवाहु ॥
[१२१]
ता पणच्चिरि वार-तरुणि-यणि पसरंतइ गीय-रवि दिज्जमाणि दाणंमि वंदिण । गिजंतइ कुमर-निव- कित्ति-पसरि गायण-सहस्सिण ॥ काराविउ वद्धावणउं सज्जण-जणियाणंदु । तियसासुर-विम्हय-करण- महिम-महदुम-कंदु ॥
[१२२]
अह स-हत्थिहिं करिवि सक्कारु निय-वयणिण आलविवि कुंद-चंद-सिउ जसु समज्जिवि । तकालागयउ जणु निय-निएसु ठाणिसु विसज्जिवि | विकमधण-निवु धारिणिहिं धणु धणवइहिं समाणु । उवभुंजइ वर विसय-मुह निरुवम-गुणहं निहाणु ॥ ११९. ६. धणि. ८. क, पयाणगिहि. १२१. २. क. पसरंतिइ. १२२. १. करि करिवि.
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