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१७६८] सत्तमभवि संखवुत्तंति महावीरचरिउ
[१७६५]
काल-जोगिण तीस-वरिसस्सु तियसिंद-सेविय-पयह पहुहु जणउ जणणि वि दिवं-गय । अ-पवज्जिरि वीर-जिणि रज्जु सयण पुरलोय संगय ।। उत्तिम-लग्गि पवित्ति दिणि गह-गोयर-सुद्धीए । सु-विणिच्छिवि परिणाम-सुहु कज्जु सुद्ध-वुद्धीए ।।
[१७६६]
नंदिवद्धणु बंधु जय-पहुहु विणिवेसहिं रज्ज-भरि पत्त-काल पुणु भणइ सामिउ । अणुजाणहि भाय मई जेण हवउं हउं सिद्धि-गामिउ ॥ जमिह न दिहिहि तक्करिहि अप्पु मुसाविउ जुत्तु । लोयणवंतउ वुहु पडइ अंध-कूवि न निरुत्तु ॥
[१७६७]
नंदिवद्धणु भरिय-गल-सरणि मुसुमूरिय-रज्ज-सुहु बंधु-विरहि जगु सुन्नु पेक्खिरु । कह-कह-वि समुल्लवइ अहह भाय किह तुहुँ निरिक्खिरु । जणणी-जणय-विओय-दुहु मह हियडइ वटुंतु । वद्धारसि खइ खारु परिखिवसि य इहु जंपतु ।।
[१७६८]
अह जिणाहिवु भणइ-नणु भाय पिय-संगु विओग-फलु कुगइ-मूलु निरु रज्ज-सुक्खु वि । विसया वि विसाय-कर नियय-ज्ज-पिउ सयण-लक्खु चि ।। इय कसु कारणि भव-गहणि निवसिज्जइ विवुहेहि । लम्भंतिहिं सासय-सुहिहिं असरिस-सुगइ-फलेहिं ।।
१७६७ २. क. मुसमुरिय.
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