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________________ १७६० ] सप्तमभवि संखवुत्तंति महावीरचरिउ [१७५७] तयणु मिलियई डिंभ- रुवाई भय तह पुणु वि तह पुणु पट्टि आरुहणु अह अहि-रू परिच्चइवि तियसु ललेउ पयट्टु जय- सामिउ पुरउ करेवि ॥ खणिण सुर-पट्टि आरुह निम्मंस-सोणिय वयणु कुविय· कयंत कराल-तणु सुरु सु पिसाय - सरूव धरु भुवणन्भुय-माण सिण [१७५८ ] पाविय - विजउ जय नाहु [१७५९] तयणु सुरगिरि- गरुय-सत्तेण अब्भाहउ सुर-अहमु तयतरु वियलिर- नयणु गय-अहिमाणु पहीण-तणु चैव तत्थ कीलेउ लग्गहिं । करिवि कंदु-कीलाए वग्गर्हि ॥ डिंभायारु धरेवि । Jain Education International 2010_05 पणमिष्पिणु पहु- पहि सिरि- विरइय-पाणि-पुडु हिय धरंत पहुहु गुण साहिवि वइयरु नमइ सुर १७५७. ४. क. पणु. ५० जाव ताव जय - खोह-कारणु । विसम- दंत पंतिहिं दुहावणु ॥ घडि-लोयणु वतु । ससि रवि-नियडु पहुतु ॥ [१७६०] अह पयासिवि तियसु अप्पाणु निमिस- मेत्तमवि अक्खुतिण । पट्टि देसि दुस्सहण मुट्ठिण ॥ तुट्टिर - रसणा-दामु | हुयउ सु अ गहिय- नामु ॥ तियस नाह- वुत्तंतु साहिवि । सयलु- नियय - अवराहु खामिव ॥ विम्हिय-मुह- अरविंदु | मंदिर गंतु सुरिंदु || For Private & Personal Use Only ३९३ www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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