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[ १७५३
नेमिनाहचरिउ
[१७५३]
एत्थ-अंतरि अमर-परिसाए सोहम्म-सुराहिवइ चंद-कंत-संमत्त-भाविउ । परिसाहइ तुट्ट-मणु भुवण नाह-गुण-गणिण गाविउ । वालु अ-वाल-प्पगइ गुरु- विक्कम वोर-कुमारु । खोहिउ सक्कु न एइ जइ इंदु वि स-परीवारु॥
[१७५४] ___ अह अ-सदहमाणु सुरु एगु तियसिंदह वयणु पहु- सविहि पवण-वेगिण पहुत्तउ । भयवं पि-हु सिमुहि सह अ-कय-संकु चिट्ठइ ललंतउ ।। ता जय-वंधवि तरु-सिहरि आरुढम्मि स-तोसु । तियसु सु पहु-भेसणह कइ पयडिय-कित्तिम-रोसु ॥
[१७५५]
भुवण-पसरिय-घोर-फुक्कारु गुंजारुण-लोयणउ दीह-काउ अलि-गवल-सामलु । जम-य-सरिच्छु गुरु- जमल-जीहु विस-वेग-पिच्छलु || विवरिय-मुहु नीसेस-जय- कवलण-विहिहिं अ-चुक्कु । उप्फणु फणि तसु तरुहु थुड परिवेढेविणु थक्कु ॥
[१७५६]
ता खणद्धिण मुक्क-पुक्कार गुरु-सासाउल-हियय नट्ट सयल-डिभई दिसो-दिस । भयवं पि-हु अ-क्खुहिउ उत्तरंतु विडविहि अहो-दिसि ॥ तसु तारिसह भुयंगमह सिरि विणिवेसिवि पाउ । परिवियसिय-वयणवुरुहु तक्खणि महियलि आउ ।। १७५५. १. क. सरिच्छ.
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