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[१७४५
नेमिनाहचरिउ
[१७४५]
अह सुरिंदिण पंच-रूवेण सिरि-वीर-कुमार-वरु विहिय-सेस-कायव्व-वित्थरु । निउ मंदिरि अह पहुहु नियवि देहु चिंतइ पुरंदरु ।। मणि-कंचण-चंदण-मयहं कलसहं जल-पब्भारु । कंव सहेसइ लहुय-तणु सामि उ वीर-कुमारु ।।
[१७४६]
हाराह अक
तयणु अवहिण मुणिवि हरि-चित्तु सोहासण-संठियह हरिहि अंक-देसि वि वइटउ । चलणम्गिण सामि सुर- सिहरि-सिहरु चालइ पहिहउ ।।
अह फुडई व वंभंडु लहु गिरि-सिहरई तुटुंति । - भज्जहिं तरुयर घर पड हिं जण-हियडई फुटृति ॥
[१७४७]
चलइ महियल सेसु सलबलइ रयणायर झलहलहिं ढलइ सयलु गह-चक्कु टायह । विहरिय मय गय भमहि तिजय-लोउ गउ गुरु-विसायह । तयणतरु विक्खुहिय-मणु सुरवइ परिभावंतु । अवहिण जाणइ जह - विहिउ सामिण इहु वुत्तं ।।
[१७४८]
तयणु पसरिय-लज्ज-वेलक्खु पणमेप्पिणु पहु-पइहि भणइ - अहह मई दुटु चिंतिउ । को न मुणइ विजिय-जउ सत्त-पसरु तुम्हाई मंतिउ ।। जे छत्तत्तिण कुणहिं धर डंडत्तिण गिरि-राउ । तहं कित्तिउ इहु जिण-वरहं गरुउ वि जल-संघाउ ।। १७४७. ६. क. विक्खुहि. ९. क. इह. १७४८. ७. क. राओ.
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