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१७४४]
सत्तमभवि संखवुत्तंति महावीरचरिउ
[१७४१]
अहह केण-वि हरिउ किं गम्भु मज्झे वि विलीणु कि-व किं-व गयउ नीहरवि कत्थ-वि । कप्पहु-परोहु न-हि आरुहेइ जगि जत्थ तत्थ वि ।। अह नाण-त्तय सच्चविय-भुवणु भवोयहि-दीवु । अवगय-तिसलाएवि-मणु सामिउ ति-जय-पईवु ॥
[१७४२]
खणिण जणणी-जणय-सुह-हेउ संलीण-अंगु वि निमिस- मेत्तु एग चालेइ अंगुलि । ता देवि न माइ निय- हियय-मज्झि गुरु-हरिस-संकुलि ।। अह गब्भि वि मासाहं छहं सट्टहं अंति जिणिंदु । अम्मा-पियरहं मणु मुणिवि विम्हिय-मुह-अरविंदु ।।
[१७४३] __ अहह ता मह मुहु वि न नियंति न वियाणहिं गुण-लवु वि लहहिं नेय उवयार-लेसु वि । संभासु वि सुणहिं नहि नोवलभहिं संपय-विसेसु वि ॥ तह-वि-ह असरिस-नेह पिउ- जणणि मज्झ उवरिम्मि । इय जीवंतहं इमहं हउं जइस न चरण-विहिम्मि ॥
[१७४४]
इय विचिंतिरु गम्भ-वासे वि कय-नियमु तिलोय-पहु गमिवि मास नव साइरेग य । चेत्तम्मि य तेरसिहि पुव्व-रत्त कालम्मि अन्नय ।। हत्थुत्तर-जुत्तिण ससिण उत्तिम-लग्ग-मुहुत्ति । पसवइ तिसलाएवि सुय- रयणु दिणम्मि पवित्ति । १७१२. २. क. अंगुलि; ८. क. पियरह. १७४३. २. क. बियाणहि
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