________________
३८४
नेमिनाहचरिउ
[१७०३ [१७०३] के-वि समहिगय-वहु-तक्क-वर-लक्खणा। के-वि पुण छंद-साहिच्च-सुवियक्खणा ॥ के-वि नव-कव्व-वावार-जिय-वम्महा । के-वि सिद्धंत-निदध्य-कम्म-प्पहा ॥६॥
[१७०४] के-वि वक्खाण-करणम्मि उज्जय-मणा । के-वि पंच-विह-सज्झाय-भव-भंजणा । के-वि किइ-कम्म-निम्माण-रंजिय-जणा । के-वि निम्मल-हियय-मोह-वल-गंजणा ।।७।।
[१७०५] के-वि गुरु-वयण-दंसण-पहटाणणा । के-वि नित्थारियाणेग-विह-भवियणा ।। के-वि मासोववासाइ-तव-दित्तया । के-वि सणाण-वियरण-अमय-सित्तया ॥८॥
[१७०६] के-वि अह-खाय-चारित्त-जय-पावया । के-वि पुणु केवल-ण्णाण वर-दीवया ॥ के-वि अणवरय-परिविहिय-पउमासणा । के-वि चिटुंति परितुट्ठ-भव-वासणा ॥९॥
[१७०७] इय मुणि-सीहहं कय-जय-लीहहं पणयहं पाव-पणासणहं । पेक्खंतउ वयणई भव-दुह-हरणई वगृहाहिवु निरुवम-गुणहं ।। १०॥
[१७०८] [११] पंचविहाहिगमेणं जा गच्छइ अग्गिमम्मि मग्गम्मि ।
ताव निरिक्खइ कप्प-दुमं व वहु-सिहरि-परियरियं ॥१॥ १७०६. १. क. उज्जुय.
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org