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१७०२ ]
सत्तमभवि संखवुरंतु [१६९७] महया महेण चलिओ गुरुणो सविहम्मि चरण-गहण-कए । जा ताव भावियप्पा सच्चवइ इमे महा-मुणिणो ॥३४॥
[१६९८] [१०] विसम-संसार-भव-भीय-मण-पसरया ।
अह-विह-नाण-आयार-विहुरिय-रया ।। पवर-सिव-नयर-संपत्ति-उक्कंठिया ॥ अट्ठ-विह-दसणायार-परिसंठिया ॥१॥
[१६९९] पुव्व-वर-पुरिस-सम्मग्गमनुगामिणो । पंच-विह-चरण-रयणस्स निरु सामिणो । आइ-जम्मोवचिय-कम्म-विद्दाविणो । वारसायार-तव-कम्म-परिसेविणो ॥२॥
[१७००] सयल-अब्भंतरारीण संहारया । धरिय-तेत्तीस-विह-वीरियायारया । सिद्धि-संसग्ग-कल्लाण-अहिलासिणो । पंचहायार-आराम-विणिवासिणो ॥३॥
[१७०१] ससि-विमल-झाण-संसार-खय-कारिणो । अइ-पसत्थोवरिम-लेस-तिय-धारिणो ॥ विमल-चउविह-समाहीहि उवसोहिया । विसय-मुह-धुत्त-चरिएहि न-वि मोहिया ॥४॥
१७०२] कि-वि अडंग-निमित्त-वियाणय । के-वि मंत-जोइस-चक्खाणय ॥ कि-वि विचित्त-विज्जा-सय-भूसिय ।
के-वि स-गुरु-पय-भत्ति-अदसिय ॥५॥ १७०२. २. क. वक्खाय, ख. विक्खाणय.
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