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१६४०]
सत्तमवि संखवुतंतुं
[१६३७]
सूर-सोम वि चइवि आरणह सुर-भवणह ठिइ-खइण सुइय वि निय-सुकयानुहाविण । सु-स्सिविणिहि उवइसिय सहिय-चंद-सिय-कल-कलाविण ॥ हुय सिरि-संख-कुमारह वि निरुवम-गुण-मणि-धाम । लहुय सहोयर सुह-निलय जसहर-गुणहर-नाम ।।
[१६३८] ___ अह निरंतरु दुहि वि वंधहिं मुहिणा वि मइप्पहिण पिययमाहिं जसमइ-पमुक्खिहि । - सह कीलिरु कुमर-वरु गमइ कालु पसरंत-मुक्खिहि ॥ अवरम्मि उ अवसरि निविण दिलु कुमारु ललंतु । निय-तेइण तेयस्सियहं .. सयलहं कंति हरंतु ।।
[१६३९]
तयणु किंचि-वि तुट-हियएण स-विसाइण किं-चि पुणु किं-चि फुरिय-सुकयाणुरागिण । परिचिंतिउ नर-वरिण विष्फुरत-बहु-भेय-भाविण ।। अहह कयत्थउ हउं जि पर जमु हुउ नंदणु एउ। पणमिर-खयराहिव-निवइ. निवहु नियय-कुल-केउ ।
[१६४०]
किंतु घिसि घिसि मह विवेयस्सु जं एरिस-सुय-रणि वसुह-वलय-धुर-धवल -खंधरि । इम्मि वि पणय-जय- जंतु-जाय-कप्पदु-वंधुरि ॥ सेविय-विसय-सुह-स्सिरि वि परिणय-पढम-वओ वि । उप्पाडउ हउं रज्ज-भरु सुयणिहि परिहरिओ वि ।। १६३७. ३. सुरविहिय.
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