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१६३२]
सत्तमभवि संखवुत्तंतु
[१६२८] धावंत-कीलंत-वग्गंत-खुज्जय-गणं ठंत-उटुंत-निवडत-वालय-जणं । सुयण-अच्छरिय-पब्भार-वित्थारणं विहिउ सुहि-सहिय-गुरुयणिण वद्धावणं ॥३॥
[१६२९] नहयर-मणहरि सुरवर-सुंदरि इय जायइ बद्धावणइ । गय-भव-हियउ वि कय-मुणि-किरिउ वि कुन संसारह मणु कुणइ ॥४॥
[१६३०] __ अह जियारिण करिवि सक्कारु खयरिंद-विवाह-मह- समय-पत्त सयलि वि विसज्जिय । कुमरो वि जसमइ-पमुह नियय-दइय अवजस-विवज्जिय ॥ निव-उवरोहिण तत्थ ठिउ परिकीलइ साणंदु । कुट्टिम-तल-ठिउ अवर-दिणि वियसिय-मुह-अरविंदु ॥
[१६३१]
सिरसि विरइय-पाणि-पुडएण दुरागम-खेइएण ईसि ईसि सामलिय-वयणिण । पुचयर-पहुत्त-निव- दारवाल-पुरिसोवइटिण ॥ सिरि-सिरिसेण-नराहिवइ- दुइण संख-कुमारु । विण्णत्तउ जह -- तुह विरहि नरवइ स. परीवारु ॥
[१६३२]
मुणइ भवणु वि सुन्नु रन्नं व सिरिखंड वि मुम्मुरु व रयण-हारु अवि असि-पहारु व । विसया वि विसाय इव सुहियणो वि दढ-दुक्ख-भारु व ।। निसुणेविणु पुणु पत्थुयउ संपइ तुह वुत्तंतु । चिट्ठइ स-परियणो वि पहु हरिस-विसाय वहंतु ॥ १६२९. १. क. हियभो; ५. क. किरिओ.
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