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[१६२३
नेमिनाहचरिउ [१६२३]
समुहु गंतु वि गुरु-विभूईए सक्कारिवि खयर-गणु कुमर-रयणु आलिंगिऊण य । संभासिवि निय-दुहिय अंव-धाइ संभूसिऊण य ॥ निय-नयरीए पवेसियउ लोउ सु सयलु स-तोसु । तह जह तियसासुर-गणु वि मणि विम्हइउ असेसु ।।
[१६२४]
ता पहुत्तइ लग्ग-समयम्मि मिलिएहिं मुहि-सज्जणि हि तेसि कुमर-कुमरीण दोण्ह वि । पारद्ध विवाह-विहि तयणु खयर पहु-दुहिय अन्न वि ॥ निय-निय-जणयाणुग्गहिण कय-सायर-सिंगार । लग्ग कुमारह पाणि-तलि फुरिय-पुलय-पब्भार ॥
[१६२५]
ता कुमारह वित्ति वीवाहि पसरंत-महूसविण नयर-लोउ सयला वि स-हरिसु । आसीसह सय-सहस देइ कुणइ मंगलिय-पगरिसु ॥ अह नर-नाहिण वित्थरिण निय-नयरम्मि असेसि । पारद्धउं वद्धावणउं तम्मि विवाह-विसेसि ।।
कह - [१६२६] ७) वज्जत-गज्जंत-बहुभेय-तूरं लभिज्जंत-दिज्जंत-कप्पूर-पूरं ।
गायंत-नच्चंत-वेसा-समूह हसिज्जंत-हिंडंत-वावणय-वृहं ॥१॥
__ [१६२७] एंत-गच्छंत-चिटुंत-बहु-सज्जणं लिंत-वियरंत-सुगसंत-जण-रंजणं । खंत-पिज्जंत-दिज्जंत-बहु-भक्खयं लोय-उल्लसिय-वहुभेय-मण-सुक्खयं ॥२॥ १६२४. ६. क. 'गहिण.
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