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[९५]
सा उ संपइ सुणिय धणकुमररूवाइय-सयल-गुण- फुरिय-विसमसर-भल्लि-सलिलय । परिचेट्टइ कह न कह रंग-महिहिं नडि जेंव भल्लिय ।। जइ न लहइ धणकुमरु वरु ता धुवु मरइ स अज्जु । इय अविलंविण पहु-पएहिं वहु-गुणु किज्जउ कज्जु ॥
[९६]
ता नरिंदिण भणिउ - किमजुत्तु सचिवाहिव इत्थ जइ कह वि होइ अणुकूलु दिव्वु वि । जं सीहिण नरवरिण समगु पीइ मह कालु सव्वु वि ॥ जइ पुणु हवइ अवच्चहं वि अणुरूवहं संवंधु । ता निय-नेह-तरुहु उवरि हउं बंधावउं चिंधु ॥
[९७]
अह नमेविणु गुरु-पसाउ त्ति जंपेविणु चित्तगइ निव-विइण्णि आवासि गंतु वि । वीसमिउण एक्कु खणु स-परिवारु वित्थरिण भोत्तु वि ॥ मुहि-सयणिहि सह आगइहिं अमुणिरु गमिरु वि कालु। सह वहु-सुह-दुह-संकहहिं चिट्ठइ जाव वियालु ॥
[९८]
तयणु तक्खणि भिन्न-भवणमि परिसंठिउ धन-कुमरु मुणिय-सयल-पुव्वुत्त-वइयरु । नणु स-पहुई कज्ज-कर भणहिं भिच्च सव्वं पि मणहरु ॥ ता किं स चउं अह वितहु एहु इय मणि चिंतंतु । सचिव दिण आगंतु घरि कय-विणइण विणत्त ॥ ९७. १. पसाओ.
९८. ३. क. सयलु.
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