________________
[९९
नेमिनाहचरिउ
[९९] कुमर किज्जउ हियय संतोसु तसु कुमरिहि धणवइहि भुज्ज-खंडु एहु स-करि घेप्पिणु । उग्घाडिवि निय-मणिण समय-पतु कज्जु वि वियप्पिणु ॥ वियरसु मह आएसु कु वि जह लहु वद्धावे मि । सा वालिय तह केत्तिय वि दिण अणुसंधामि ॥
[१००]
तयणु दाहिण-नयण-विप्फुरणपरिसूइय-पवर-पिय- लाहु हरिस-वियसंत-लोयणु । निय-हत्थिहिं घेत्तु लहु भुज्ज खंड गुरु-हरिस-भायणु । विक्कमधण-निव-अंगरुहु तं उग्घाडइ जाव । गुरु-विम्हय-पप्फुल्ल-मुह- कमल निरिक्खइ ताव ॥
[१०१]
अद्ध-चिन्नय-चत्त-विस-कंद दर-विहडिय-चंचु-पुड सिढिल-पक्ख वियलंत-कंधर । परिमउलिय-नयण-जुय गरुय-ताव-वेविर-मुहंतर ॥ नव-विरहुन्भव-गरुय-दुह दूर-पणह-विवेय । कलहंसिय तहिं लिहिय तह अक्खर-पंतिय एय ॥
[१०२]
कमल-वल्लह सुपय गय-हियय महुर-स्सर विमल-हप राय-हंस-संभव सुपक्खिय । जय-सुहयर-चरण गइ- विउल सुहय सुन्दर सु-दक्खिय ।। गरु-विरहाणल-तविय-तणु · रायसु अलहंत ।। चिट्ठइ कलहंसिय मयण- सवरिण एह हम्मंत ।। १०१. क.विफुरणु. ८. क. मह.
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org