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________________ १५९८ ] सत्तमभवि संखवृत्तंतु [१५९५] इय स-निठुरु भणिर सा वाल रोयंत दुसुक्क हिं आभासिय सयल-तणु किं जणइण जणणीए किमु किमु सहियण-सयणेण । किं संखिण तिण मई जि तुहुं पडिवज्जसु हियएण ॥ किह पसर पुणु पुणु वि लहु वच्च वेग्गलउ संख-कुमारु लहेवि पहु संधि चडेविणु गयवरह वेवमाण सव्वंग इयरिण । [१५९६] ree फिटु फिटु वयणि तुह जीह फुरिय-मयण - वाणोलि विहरिण ॥ Jain Education International 2010_05 [१५९७] इय दुवेण्ड वि तेसि वयणाई निसुणतर कुमर-वरु इय चितिरु अक्कमइ पेक्ख खयरिंदह पुरउ धरणि-निवेसिय-मुह-कमलु तरुणि रयणु पुव्वुत्तु ॥ तं जितं जि दुव्वयणु भणिरह । लहसि को वि जमणत्थु इहरद्द || जणु किह अवरि रमे । को खर-उवरि चडेइ ॥ नूण एस मह पाण-वल्लह । अग्ग-मग्गु कित्तिउ वि तह जह ॥ अखलिय- सीलु निरुत्तु । [१५९८] अह निरिक्खिय संख-कुमरेण १५९७. ५. क. कित्तिओ. १५९८. ३. क. ख. राहिराहिण. सुय-पुव्व-तब्बइयरिण मणि से हर नामगण सुयणु निरिक्ख आगयउ एहु जि संख - कुमारु | तुह उवदंसि एहि पुण रणि निवडंतु अ-सारु || तीए सविहि खयराहिराइण । तेण भणिउ - मह सुकय- जोगिण || For Private & Personal Use Only ३६३ www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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