________________
३६१
१५९०]
सत्तमभवि संखवुत्तंतु
[१५८७]
अह कुमारिण भणिउ - नणु अंव मा खेयमुव्वहसु तुहं एस कुमरि आणिवि पहुत्तउ । इय कहमवि थिरु करिवि चित्तु तासु रमणिहि निरुत्तउ । लग्गउ अवलोइउ कुमरु मज्झि तीए अडईए । न-उण नियच्छइ तहिं महिहिं पय-मेत्तु वि तरुणीए ॥
[१५८८]
तयणु वियलिर-तिमिर-धम्मिल्ल परिल्ह सिर-तारय-वसण कलयलंत-तरु-सिहर-पक्खिय । परिसंदिर-कुसुम-महु- विंदु-मिसिण रोयइ व दुक्खिय ॥ जसमइ-कुमरिहि दुक्खिण व अइरिण रयणि विलीण। पडिवक्खिय-खयरिंद-मुह- बुद्धि व कुमुइणि झीण ॥
[१५८९]
कुमर-रयणह पहु पयासेउ सिव वियसई दिसि-मुहई उदय-गिरिहिं आरुहिउ दिणयरु । संपाविय-उदउ निरु रायहंस-कमलोह-सुहयरु ।। पत्तावसर समुल्लसिय संझ राय-सिंगर । नं कुंकुम-कोसुंभ-वर- वत्थ-कयालंकार ॥
_ [१५९०]
संत-चक्क विहिय-संतोस पविरायइ पुन्व-दिसि अवहरंत-तम-वल्लि-लज्जिण । पसरंत-रायारुणिण नव-वहु व्व रवि-दइय-संगिण ॥ उदयंतेण य रवि-निविण गंतिण पडिवक्खु । कमल-कोसि विणिहित्त-कर वद्ध गुरुत्तणि लक्खु ॥ १५८८. १. क. धम्भिल्लु. १५९०. ९. वंधु.
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org