________________
३६०
संभूसिवि धूय निय सिरि-हत्थिणपुरि नयरि ता विज्जाहर- पुंगविण सा वालिय पत्थिय पुरउ
[१५८३]
इय विचित्तहिं वयण - रयणेहिं
सिरि-संख - कुमरह विरहि धुवु न नियइ सम्मुहु वि इयर व खयर - नरिंद-सुय यह पुणु मणु तमु जि पर
Jain Education International 2010_05
नेमिनाहafts
जाव तीए वरणत्थु नरवई । पेसवेइ स-सचिव महामइ || मणि सेहर नामेण ।
निवइहि गुरु-पणपण ॥
[१५८४]
अह नराहिवु भण
इय मणिसेहरु खयर - वइ अवरम्मि उ दिणि निसिद्दि नीय कुमारी विलविरि उ अंधा तसु मंकडि व
खमरिंद
दूरि ताव एयह हियालिय । कुसुमसरह इंदह वि वालिय ।। मग्गवि गया अणेगि । गोयरि चडियउं वेग ||
[१५८५]
सुविणु जाय-वेलक्खु
[१५८६ ]
-
गयउ नियय-ठाणम्मि दुम्मणु । कह-वि करुणु विलविर हरेविणु ॥ हउं चिट्ठहुं इह मुक्क । नियय- पलंवह चुक्क ॥
इय महायस दुक्ख संतत्त
हउँ जसमइ-नामयउं तरुणि रयणु चिहुं नियंतिय । अनियंती पुणु तमिह परियडामि वहुहा रुयंतिय ॥ इय नर- रयण करावडिउ चिंतामणि मह नट्ठु । आसि महा-तरु मूलह वि चिरु रोविउ वि विठु ॥
१५८३. ५. क, नहामइ.
For Private & Personal Use Only
[ १५८३
www.jainelibrary.org