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१४६१]
सत्तमभवि संखवुत्तंति रइसुंदरीकहा [१४५२] ता धिसि घिसि पुरिसाणं खण-रत्त-विरत्त-चित्त-पसराणं ।
जे मरमाणीण वि अवलाणं चितं पिन कुणंति ॥१०९।।
[१४५३] परमेण्हि किं काउं अवरं तीरइ इहोववन्नाए ।
इय चिंतंतीए मए कुडुंव-निव्वाह-मेत्तमिमं ॥११०॥
[१४५४] एक्कसि एक्को पुरिसो सेवेयन्वो त्ति अस्थि पडिवन्न ।
दन्वेण भावो उण सेवेमि न एक्कसि पि नरं ॥१११॥
[१४५५] इय अंवो तुज्झ मए कहिओ निय-नियम-वइयरो सयलो ।
तुमए उण नो कस्स वि कहियन्बो जाव-जीवं पि ॥११२॥ [१४५६] अह पडिवन्नम्मि इमे विमिय-हिययाए मयरदहाए ।
उदिसिय देह-चिंतं उट्ठइ रइसुंदरी तरुणी ॥११३॥
[१४५७] दिद्वि-पहाइ क्वंताए तीए सहस त्ति मूलएवो वि ।
चूडियमुप्पाडेउं स-हाणे नेउ मुत्तूण ॥११४॥
[१४५८] vण सिद्धं सज्झं ति चिंतिरो कुट्टणीए पणमेउं ।
गंतुं निययम्मि घरे चित्तयरं वाहरावेउं ॥११५॥
[१४५९] चित्त-पडए लिहाविय हिमालयं तत्तले य वण-गहणं ।
तम्मज्झे वहु-पत्तल-साहालं गरुय-सहयारं ॥११६॥
[१४६०] तस्स सिहर-साहाए सारस-नीडं पुणो अइ-महल्लं ।
तम्मज्झे उण सारस-जुयलं सह-किंटय-जुएण ॥११७॥
[१४६१] एगत्थऽन्नत्थ पुणो डज्झिर-सहयार-पायव-तलम्मि ।
विहडंत-चंचु-संपुडमंक-हिय-साव-जुयलिल्म ॥११८॥
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