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________________ १४४१] सत्तमभवि संखवुत्तंति रइसुदरीकहा [१४३३] नणु पडि कूलं जइ तुह समुहं को वि-हु खिवेइ दिद्धि पि । ता है तस्स कवाले चडेउमिच्छामि धुवं ॥९॥ [१४३४] एत्थ पुणो अ-वियाणिय परमत्था कस्स किं करेमि अहं । ता निच्च-मन्नियाए स-माउयाए कहसु तत्तं ॥९१॥ [१४३५] इय बहु-विह-वयण-परंपराहिं सब्भावमाणिया संती। सोहाविय इयर-जणं मुय-सारिय-चेडियाईयं ॥१२॥ [१४३६] इयरस्स न जा-जीवं कहियव्वमिमं ति सवह-विहि-पुव्वं । रइसुंदरी स-वइयरमुल्लविउमिमं समाढत्ता ॥९३॥ तहा हि [१४३७] हिमगिरि-तहम्मि वियडे वण-गहणे भूय-सिहरि-सिहरम्मि । एगम्मि महा-नीडे विजिएयर-नीड-वित्थारे ॥९४॥ [१४३८] अहमासि पुन्च-जम्मम्मि सारसी सह निएण दइएण । पाठिंती य स-किंटय-जुयलं कालं गमावेमि ॥९५॥ [१४३९] अह अन्नया य निय-पिययमेण सम-सुह-दुहेण वि-हु कह-वि । विहिणो वसेण दावानलम्मि संपत्त-पसरम्मि ॥९६॥ [१४४०] किंटय-उवरि-निवेसिय-पक्ख-जुया नीडयम्मि सुह-सुत्ता । परिहरियाऽहं दइयं स-जीवियव्वं कुणंतेण ॥९॥ [१४४१] दावग्गिणा वि अ-वियक्किएण सव्वत्थ वित्थरंतेण । मह-पक्खाहिं सहस च्चिय नीडं निद्दड्ढमइरेण ॥९८॥ ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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