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[१४.३
. नेमिनाहचरिउ [१४०३] तरणिम्मि अणुदयंते गहिऊणं कुसुम-सलिल-छगणाई ।
गंतूण मयरदट्ठा-कुट्टणि-भवणम्मि अणु-दियहं ॥६॥
[१४०४] वियरेऊण च्छडयं गुंहलियं काउ सथिए दाउं ।
नव-नव-विच्छित्तिए कुसुम-प्पयरं च मोत्तूणं ॥६१॥
[१४०५] अवरं पि रेणु-कयवर-तणाइ नीसेसमवि अवहरेउं ।
कुदृणि-चेडीहि पि-हु अ-मुणिज्जतोऽणु-दियहं पि ॥६२॥
[१४०६] आगच्छइ निय-भवणे स धुत्त-चूडामणी अहऽन्न-दिणे ।
सा मयरदह अक्का पढमयरं उठ्ठिया संती ॥६३।।
[१४०७] तह-रूवमसेसं पि-हु स-मंदिरं पेक्खिऊण स-वियकं ।
पुच्छइ चेडीओ जहा - कोऽणु-दिणं मह घरे एवं ॥६४॥
[१४०८] महिमं करेइ एरिसमह भणियं चेडियाए एगाए ।
सम्मं न मुणिज्जइ परमंवो इह अणुदिए सूरे ॥६५॥ [१४०९] परिमुंड-मुंड-तुंडो परिहिय-जर-चीवरो तुरिय-तुरियं ।
काऊण इमं वच्चइ पभाय-समए नरो एगो ॥६६॥
[१४१०] अह नूण इमो चोरो चारो पर-दारिओ व्ध को-वि नरो।
किं-चि वि महेइ मह पुरओ त्ति मुणेऊण स-मईए ॥६॥
[१४११] आणत्ताओ चेडीओ जह - अहह अज्ज सव्व-जत्तेण ।
धरिऊण मह पुरो सो आणेयव्वो महा-पुरिसो ॥६८॥
[१४१२] अह वीय-दिणे रयणी-पच्छिम-पहरम्मि ताउ चेडीओ।
जगंतीओ तप्पहमवलोएंतीओ चिट्ठति ॥६९॥
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