________________
३३८ नेमिनाहचरिउ
[१३८३ [१३८३] अह सहसा विसमाउह-सर-सल्लिय-तणु-लया निवडिया सा ।
सुद्धम्मि धरा-वीढे अप्पाणं पि-हु अ-चेयंती ॥४०॥
[१३८४] मयणो वि सणिय-सणियं पच्छिम-पहमक्कमेउमाढत्तो
अह एगदंति-दोदंति-मयरदहाइ-अक्काओ ॥४१॥
[१३८५] हा हा हयम्हि हा हा हयम्हि इय जंपिरीउ धावेउं ।
। रइसुंदरीए सिसिरुवयारे काउं पयट्टाओ ॥४२॥
[१३८६] ता किं-चि पत्त-सण्णा जंपइ रइसुंदरी- अहह अंवो ।
__ आणेसु कुसुमचावं धरिऊण करम्मि नरमेयं ॥४३॥
[१३८७] अन्नह निस्संदेहं पेच्छंतीए वि तुब्भ अइरेण ।
एय-नर-संग-सुहमलहंता जाहिति मह पाणा ॥४४॥
[१३८८] तयणु स-चेडीओ वि-हु अक्काओ चविऊण विसमसरं ।
आणेउ घेत्तु हत्थे मुयंति रइसुंदरीए पुरो ॥४५॥
[१३८९] अह सा तस्संगम-सुह-संपत्त-सुहासिया निसमसेसं ।
अइगमइ विविह-कीला-विणोय-जोगेण साणंदं ॥४६॥
[१३९०] नूणमिमा मह संगम-विरहम्मि न जीविहि त्ति सयमेव ।
जा-जीवं पि स-सविहे ममं धरेहि त्ति चिंतंतो॥४७॥
[१३९१] कजंतरमुद्दिसिउं मयणो कुट्टिम-तलाओ उत्तरइ ।
जा ताव तन्निउत्तय-चेडीहिं से पुरो भणियं ॥४॥
[१३९२] नणु तुम्भेहिं रइसुंदरीए चिंता न का-वि कायव्वा ।
वसियव्वं च सुहेणं आवासे अज्ज निययम्मि ॥४९॥ १३८५. १. क. हयंमि, २. हयंमि.
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org