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१३८२ ] सत्तमभवि. संखवुत्तंति रइसुंदरीकहा [१३७४] जह - अज्ज सामि तुमए निययावासम्मि चेव वसियव्वं । . मह सामिणी उ एक्कसि सेविय-पुव्वं न सेवेइ ॥३१॥
[१३७५] तयणु विसायावन्नो वेसमणो चिंतए - अहह विहलो।
हूओ धण-व्वओ तह अ-ट्ठाण-परिस्समो मज्झ ॥३२॥
[१३७६] जाओ य एस सव्वो मह चेवाहाणगो जण-पसिद्धो ।
जह भक्खिओ य काओ अजरामरया य नो जाया ॥३३॥
[१३७७] परमिह धुत्तो सुत्तो घोरइ पुक्करइ नालियो मुट्ठो ।
इय होज्ज जं व तं वा किं एत्तो तीरए काउं ॥३४॥
[१३७८] इय चिंतिरो य गंतुं पुरओ मयरज्झयस्स बेसमणो ।
सयलं पि स-वृत्तंतं साहइ मउलिय-मुहंदुरुहो ॥३५॥
[१३७९] ता विसमसरो पभणइ - नणु भणियं चेव पुरोऽत्थि मए ।
जह सोहग्ग-गुणेणं जइ वंधिज्जति गणियाओ ॥३६॥
[१३८०] नणु जइ एवं ता तुह अवरो नत्थित्थ जीव-लोगम्मि ।
सोहग्गिय-सिरि-तिलओ इय तोलसु तं पि अप्पाणं ॥३७॥
सोर
[१३८१] तत्तो - नणु जइ नेयं भुंजामि निरंतरं जहिच्छाए ।
तो निय-अभिहाणं पि-हु तुह पुरओ नूण न वहेमि ॥३८॥
[१३८२] इय चिहिय-गुरु-पइण्णो तग्गोयरमागओ कुसुमचावो ।
सल्लइ य स-रोसं निय-सरेहिं रइसुंदरि-सरीरं ॥३९॥ १३७७. ३. होउज्ज.
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