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१३६३]
सत्तमवि संखवुत्तंति रइसुदरीकहा [१३५४] अह ईसि विहसिऊणं वेसमणो भणइ - वार-विलयाणं ।
न घडइ इमं जओ जो वहुययरं वियरइ इमासि ॥११॥
[१३५५] तमिमाओ वहुयरमवि कालं सेवंति विहव-इच्छाए ।
जह न इमं पडिवज्जह ता चलह हरेमि संदेहं ॥१२॥
[१३५६] अह भणियमणंगेणं - मा भणसु इमं तुमं पि वेसमणो ।
गणिया विहव-पिय च्चिय एसो जं लोइय-पवाओ ॥१३॥
[१३५७] परमत्थेणं तु फुडं सोहग्गि-पियाओ होति एयाओ ।
माणेति पुणो धणयं जं तं अक्काणुवित्तीए ॥१४॥
[१३५८] वेसमणोऽह सहासं पभणइ -- नणु जइ इमं तओ मयणो ।
सोहग्गिय-सिरि-तिलओ तं चिय एयम्मि संसारे ॥१५॥
[१३५९] किं तु मुणिस्सामि अहं जइ वीय-दिणे वि तं तुमं भयसि ।।
इय विवयंताऽनोन्नं दो वि-हु वेसमण-मयणा ॥१६॥
[१३६०] उज्जेणीए पुरीए पत्ता आवासिया य एगत्था ।
ता सविसेसायण्णिय-रइसुंदरि-गणिय-वुत्तंतो ॥१७॥
[१३६१] पढमम्मि दिणे मयणं अणुजाणावेउ विहिय-सिंगारो ।
रइसुंदरीए भवणे संपत्तो वेसमण-जक्खो ॥१८॥
[१३६२] अह एगदंति-दोदंति-सव्वगासाभिहाण-अक्काओ ।
अक्खुडिर-प्पडिराओ समुहाओ उर्वति से सहसा ॥१९॥
[१३६३] तव्ययणेण य काओ वि चेडीओ मुयंति कुसुमग्छ ।
काओ वि रयण-कंचण-सीहासणयं पयच्छति ॥२०॥
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