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________________ ३३५ १३६३] सत्तमवि संखवुत्तंति रइसुदरीकहा [१३५४] अह ईसि विहसिऊणं वेसमणो भणइ - वार-विलयाणं । न घडइ इमं जओ जो वहुययरं वियरइ इमासि ॥११॥ [१३५५] तमिमाओ वहुयरमवि कालं सेवंति विहव-इच्छाए । जह न इमं पडिवज्जह ता चलह हरेमि संदेहं ॥१२॥ [१३५६] अह भणियमणंगेणं - मा भणसु इमं तुमं पि वेसमणो । गणिया विहव-पिय च्चिय एसो जं लोइय-पवाओ ॥१३॥ [१३५७] परमत्थेणं तु फुडं सोहग्गि-पियाओ होति एयाओ । माणेति पुणो धणयं जं तं अक्काणुवित्तीए ॥१४॥ [१३५८] वेसमणोऽह सहासं पभणइ -- नणु जइ इमं तओ मयणो । सोहग्गिय-सिरि-तिलओ तं चिय एयम्मि संसारे ॥१५॥ [१३५९] किं तु मुणिस्सामि अहं जइ वीय-दिणे वि तं तुमं भयसि ।। इय विवयंताऽनोन्नं दो वि-हु वेसमण-मयणा ॥१६॥ [१३६०] उज्जेणीए पुरीए पत्ता आवासिया य एगत्था । ता सविसेसायण्णिय-रइसुंदरि-गणिय-वुत्तंतो ॥१७॥ [१३६१] पढमम्मि दिणे मयणं अणुजाणावेउ विहिय-सिंगारो । रइसुंदरीए भवणे संपत्तो वेसमण-जक्खो ॥१८॥ [१३६२] अह एगदंति-दोदंति-सव्वगासाभिहाण-अक्काओ । अक्खुडिर-प्पडिराओ समुहाओ उर्वति से सहसा ॥१९॥ [१३६३] तव्ययणेण य काओ वि चेडीओ मुयंति कुसुमग्छ । काओ वि रयण-कंचण-सीहासणयं पयच्छति ॥२०॥ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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