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सत्तमभवि संखवुत्तंतु
[१३३९] धम्म-कम्मेसु संठविय सावय-मुर्णि । आणवइ संझ-दूई सख्त-झुणिं ॥ तयणु पच्छिम-वहू-राय-रंजिय-तणू । अत्थमणु पत्तु दिणयरु दुहाविय-जणू ॥१८॥
[१३४० तिमिर-भरु फुरिउ नीसेस-दिसियंतरे। सव्वओ नं निसेहेइ पह-संचरे ॥ अह वियंभेइ कोसिय-कुलं नहयले । विरसु विरसंति सिव-नियर धरणीयले ॥१९॥
[१३४१] नलिणि-रमणीओ भमरोलि-परिउझिया । चक्क-रव-मिसिण नं रुयहिं पिय-विरहिया ॥ फुरिय परदारि-तक्कर-पमुह दुज्जणा । रयणि-रमणी वि वित्थरिय सव्वप्पणा ॥२०॥
[१३४२] संख-कुमरो वि सेज्जायले संठिओ । साहु-कह-सवण-बुद्धीए समहिडिओ ॥ सचिव-तणयं मइप्पहु ति अभिहाणयं । भणइ - नणु कहसु मह किं-पि अक्खाणयं ॥२१॥
[१३४३] तयणु सीसम्मि संठविय-कर-संपुडो । भमइ सचिवंगरुहु चत्त-मण-वंकुडो॥ देव तुम्हाण सविहम्मि नणु को णु हउँ । तह-वि निसुणेह संखेवओ जिह कहउं ॥२२॥
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