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[ १३३४
नेमिनाहचरिउ
[१३३४] नियय-इच्छाए विसमे वि कज्जे अहं । आइसेयव्वु सामिय तए पच्चहं ॥ सारु साहीण-वाहणह जं एत्तिउं वि । पुत्र-पुरिसेहिं वण्णिउ स-सत्थेहिमवि ॥१३॥
[१३३५] इय सुणेऊण संखो वि पर-हिय-रुई । देइ पट्टीए तमु हत्थु उत्तिम-मई ॥ किंतु धण-कणय-रयणाणि तसु मंदिरह । गहिवि स-प्पच्चयं दिण्ण मुसियह जणह ॥१४॥
[१३३६] सेसु घर-सारु पल्लि-प्पहुहु संतियउ । नियय-भंडारि संगहिवि लह घत्तियउ॥ तयणु अभयं पयच्छेउ पल्लि-प्पहुं । कुमर-पुरओ विहेऊण चल्लिउ लहुं ॥१५॥
[१३३७] कमिण पत्तो य एगाए पल्लीए सो । सरय-रयणियर-कर-विमल-पसरिय-जसो ॥ अह जहा-जोग्गु विणिवेसियाखिल-वलो। लेइ आवास सो तत्थ विहलिय-खलो ॥१६॥
[१३३८] तयणु मुणिऊणमिव संख-सूरुग्गमं । विहल-करु तरणि वच्चइ दिसं पच्छिमं ॥ अह नहस्सिरि-समीवाओ रवि-कामुयं ।
वाहरेउं व पच्छिम-मयच्छी दुयं ॥१७॥ १३३८. ३. क. मह; ख. तह.
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