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१३३३]
सत्तमभवि संखवुत्तंतु
[१३२९] एत्थ-अंतरि कुमारो वि नय-निउणओ । मुणिय-नीसेस-पल्लिवइ-कय-अविणओ ॥ नियय-चउरंग-सेणाए तं पर-बलं । तुरिय वेढेइ कायव्वया-वाउलं ॥८॥
[१३३०] तयणु पल्लि-प्पहू खुहिय-मण-पसरओ । रुद्ध-नीसेस-निग्गमण-वावारओ ॥ गरुय-भय-विहुरु गइमन्नमनियंतओ । तरल-नयणेहिं दिसियक्कु पेक्खंतओ ॥९॥
[१३३१] गलिय-अहिमाणु परिचत्त-सयलाउहो । आगओ संख-कुमरस्सु लहु सम्मुहो । विण्णवेई य सिरि रइय-कर-संपुडो । नाह जइ वि हु अहं हुयउ अइ-चंकुडो ॥१०॥
[१३३२] तह-वि पसिऊण मह खमह अवरद्धयं । रक्खह य नाह इह मममहम-चिंधयं ॥ सज्जणा जन्न अवयारयम्मि वि जणे । खामिया धरहिं अ-पसाउ कहमवि मणे ॥११॥
[१३३३] सारु जं किंचि चिट्टेइ मह मंदिरे ।। तमवि सयलं पि तुब्भे कुणह निय-करे ॥ जस्सु पणमिरिण लोगिण सिरो दिज्जए ।
तस्सु किं कह-वि लोयणु वहिं किज्जए ॥१२॥ १३१०. ३. क. 'मन्नियं.
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