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१२८० ]
सत्तमभवि संखयुतंतु
[१२७७]
अवयरिउ तयणु सा वाल गन्भह वसिण | पंडु - गंडयल हुय धोय इव जस-रसिण ॥ अवरिहिं विकुच्छिवत - गन्भह गुणिहिं । सिरिमई देवि संगहिय जय -रंजणिहिं ॥ १३॥
[१२७८]
faffe कित्तिहि अइगइहि पुणु सिरिमइहि । हुयउ दोहळउ एरिसउ निरु सुह-मइहि ॥ जह जु जं किं-पि इच्छेइ त तं लहुं । महिहिं वियरेमि मग्गिउ वि हउं निय-पहुं ॥ १४ ॥
[१२७९]
तयणु विष्णाय - वइयरिण तसु नर-वरिण । दोहलउ सयल पूरियउ सव्वायरिण || कमिण पुण्णेस दियहेसु देवि वि सुयं । सुहिण उप्पायर तयणु सुहि-संमयं ॥१५॥
[१२८०]
महिहिं सयलहं वि सुय-जम्मू जाणावियउ । जम्म-भवणे य सु-पयत्तु कारावियउ || रयण-चुन्नेण रंगावली दाविया | घर- दुवारम्मि हल - मुसल उब्भाविया ॥ १६॥
१२७८. ३. क. लहु.
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