________________
३२०
[१२७३
नेमिनाहचरिउ
[१२७३] तयणु अमुणंत सिविणे वि विरहिय-दुहई । सुइरु भुंजंति ते असम-विसइय-सुहई ॥ अवर-अवसरि पुणो निसिहि सुह-सुत्तिया । नियइ सिविणम्मि सिरिसेण-नरवइ-पिया ॥९॥
[१२७४] सेउ चउ-दंतु सव्वंग-लक्खण-धरो । वयणि पविसंतु वग्गंतु वर-कुंजरो ॥ अह लहु वि मुद्ध पडिवुद्ध-नरवइ-पुरो । रइय-कर-कोस साहइ सिविण-वइयरो ॥१०॥
[१२७५] ता नरिंदेण तुट्टेण उढिवि लहुँ । हियइ धरिऊण गुरु-पयई तह जिण-पहुं ॥ भणिउ देवीए पुरओ जहा - नंदणो । इमिण सिविणेण तुह कहिउ जय-रंजणो ॥११॥
[१२७६] तयणु एवं हवेउ त्ति परिजंपिरी । हरिस-वियसंत-मुह हूय स वि पणमिरी ॥ अह चवेऊण आरण-अमर-मंदिरह । तियसु अवराजिउ सु उयरि तमु गोरडह ॥१२॥
____Jain Education International 201005
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org