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१२२४]
पंचमभवि अवराइयवुत्तंतु
[१२२१]
सुयण-विवुहहं करिवि पडिवत्ति सम्माणु साहम्मियहं मणि धरेवि उत्तिमहं नायई । परिसीलइ एग-मणु निच्च-कालु जिण-धम्म-कम्मई॥ एग-दिणं पिव अइगमइ वहुयई वरिस-सयाई । दोगुंदुग-तियसु व्व उवभुंजिरु परम-सुहाई ॥
[१२२२]
अवर-अवसरि निसिहि सिविणम्मि सुह-सयणिज्नम्मि गय नियइ पीइमइ मुह-पसुत्तिय । अंक-ट्ठिय-रयण-निहि पंच वन्न-मणि-पह-विचित्तिय ।। अह उद्वेविणु पीइमइ सिर-विरइय-कर-कोसु । सिरि-अवराजिय-नरवइहि साहइ सिविणु स-तोसु ॥
[१२२३]
ता नरिंदिण भणिउ - नणु अम्ह कुल-कप्प-पायव-सरिसु · तुज्झ देवि हविहइ तणूरुहु । तयणंतर पीइमइ
तुट्ट भणइ जह -- होउ पहु इहु ॥ अह धम्मह धम्मियहं कह- जोगिण रयणि गमिति । जा ता गोस-समागमणि मागह-निवह पहंति ॥
[१२२४] -
देव चिर-कय-सुकय-जोगेण पसरंत-तेयब्भहिउ निहय-सयल-पडिवक्ख-वित्थरु । उदयायल-सिहर-ठिउ नं जयस्सु साहेइ दिणयरु ॥ हवइ उवरि उदयह उदउ गरुय-मुकय-वीयाहं । उज्जमवंतहं सु-पुरिसहं उत्तिम-मग्ग-ठियाहं ॥ १२२१. ६. क. हवर.
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