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________________ ३०६ नेमिनाहचरिउ [१२१७] इय सुणेविणु वयणु मुणि-वरहं संसार- विरत-मणु सामंत-अमच्च वणि अह अवराजिउ वित्थरिण गहिवि चरणु हरिनंदि-निवु जयइ सिद्धि-सुह-कज्जि ॥ सिव - सुहिच्छु हरिनंदि - नरवई । ari - सहिउ निय-भवणि आवइ || विणिवेसिउण स-रज्जि । परिसोसिय-कम्म-मलु पडिवो हिय-भविय - जणु अ- पडिहय- वर-नाण- धणु हुउ हरिनंदि सु राय - रिसि Jain Education International 2010_05 [१२१८] कमिण वहु-विह-तव-विसेसेर्हि विमल नाण- सच्चचिय- तिहुयणु । परिविमुक्क- माणविय-भव-तणु ॥ गलिय-सयल - अवलेउ । सिव-मंदिर - सिरि-केउ ॥ [१२१९] सो वि पुणु तिण पीइमइ - पमुह बहु-भय-अंतेउरिण उवभुंजिरु पायडर दे यदु विहं वर सचिव पर मित्त पुणु विमलबोहु सुपसिद्धु ॥ समगु पंच - विह विसय-सुक्खईं । पुव्व- जम्म-कय-सुकय- लक्खई ॥ पिहू पहु दे समिद्ध । [१२२०] अर - कालिण महिहिं सयलाई परिसाहिवि सत्त- गणु नच्चाविवि कित्ति वहु कारिवि नवई जिणाययणजि ण्ण समुद्धारेवि । पवयण भत्ति पयासिण गुरुणु सक्कारेवि ॥ एग-छत्तु निय-रज्जु संठिवि । भुवण - रंगि तह आण फेरिवि || For Private & Personal Use Only १२१७ www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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