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________________ ३०५ १२१६] पंचमभवि अवराइयवुत्तंतु [१२१३] दुलहु माणुस-जम्मु पर-लोयपरिसाहणु तहिं पवरु विसय-सुक्ख परिणाम-दारुण । परि चंचलु जीविउ वि दइय-संग-सुह विरह-कारण । ता संसार-पलीवणय- विज्झावणि जइयव्वु । तं पुणु जइ परि धम्म-वर- मेहिण उपसमियच्वु ॥ [१२१४] ___ तत्थ अहिगमियब्बु सिद्धंतु निसियव्बउ मणि सु-गुरु झाइयव्य असरणय-भावण । चइयव्व य संत-जण- संगई वि दुनय-निवारण ॥ भवियव्वळ आणा-परिहिं कायव्वउं पणिहाणु । रक्खेयव्वउं आयरिण जिण-पवयण-अवमाणु ॥ । [१२१५] तं तु भवियणु कुणइ विहिवंतु ता व यवु विहि- परिण मुत्त-मग्गाणुसारिण । मुणियव्वउं अप्पु अणु- समउ कलिउ गुण-दोस-भाविण ॥ जइयव्वळ अणु-वासरु वि अ-सवन्निहिं जोगेहिं । रक्खेयव्वई इंदियई गच्छिर-विस्सोएहि ॥ [१२१६] इय जयंतह भविय-सत्ताई सोवक्कम-कम्म-खउ निरुवकमहं अणुवंध-ववगमु । संजायइ कमिण पुणु हवइ सग्ग-अपवग्ग-संगमु ॥ ता संसार-पलीवणउं . विज्झायइ नीसेसु ।। इय परिसीलहि वसुह-पहु इहु तुहुँ कम्म-विसेसु ॥ १२१५. १. क. विहवं तु. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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