________________
पंचमर्भाव अवराइयवृत्तंतु
[१२०५]
अवर पेच्छिर कुमर - लायण्णु कुसुमाउह-हय-हियय faas गहिवि कन्नम्मि नेउरु |
१२०८ ]
सु-बुद्धिर्हि करयलिण
अगहिय-कंचुग- उत्तरिय नियइ कुमार- मुहं बुरुहु
[१२०६]
का-वि कन्नहं कुणइ कंडुयणु
कडियडम्मि संठवइ वानरु ||
कवि पुणु नीवी- हत्थ | जुव-चुज्जर अवस्थ ॥
पयडीहुय - सिहिण - जुय धावंत सवडमुहिय कुमरु वि अणुरायाउरहं
ससहर - उदइ स भारिउ वि वास भवणि संपत्तु ॥
पसरंत रायाउरिण परिकीलिवि बहु-विहिहिं अणुजाणा विवि कह-कह - वि निय - पुर- गमणिण तोसबइ
अवर उत्तरिय-मित्त - अंवर | हासवेइ सयल वि वसुंधर ॥ तरुणिर्हि चरिय नियंतु ।
Jain Education International 2010_05
[१२०७]
तयणु आइम- जम्म-संबंध
समगु पीइमइ-तरुणि - स्यणिण । पत्त-कालु सह स-परिवारिण || सिरि-जियसत्तु महिंदु | सिरि- हरिनंदि-नरिंदु ||
[१२०८]
ता नर्रिदिण सुणिय- वइयरिण
वद्धावणु आयरिण अह गरुरु वित्थरिउ अह तर्हि कोसल-निव - दुहिय रंभ वि सिरिमंदिर-नयर
१२०८. ३. क. आणि.
जणिय-चुज्जु कारविउ वसुहहं । हियइ हरिसु सुहि-सयण - विवुह || कणयस्सिरि संपत्त । पहु-निव-धूव पहुत्त ||
For Private & Personal Use Only
३०३
www.jainelibrary.org