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नेमिनाहचरिउ
[११९३] ___अह - तियहं सहुं कल-वियारेण का गरिम महायसहं नहि ललेइ हरिणीहिं सह करि। परि पगइहिं तुच्छ तिय इय इमीए एयम्मि अवसरि । जइ हउं दप्पु न उद्धरहुं ता नहवइयह (अ)वस्सु । बज्जेइ य अवजस-पडहु सयल-पुरिस-वग्गस्सु ॥
[११९४]
इय विचिंतिरु सयल-निव-सुइहि परियरियह नरवइहि पयडु पीइमइ सविह-संठिय । अवराजिय-नर-मणिण पढमु सद्द-विसयम्मि पुट्ठिय ॥ ता विसमाउह-धीवरह सर-सल्लिय-सव्वंग । पडिउत्तरु अ-मुणंत ठिय मोणिण चवल-अवंग ॥
___ अह कुमारिण अन्न-अन्नम्मि विसयम्मि पुच्छिय कुमरि न-उण किं-पि उत्तरु पयच्छइ । ता स-सहिहिं बहु-विहिहिं हसिय संत पीइमइ जंपइ ।। अज्जउत्त हउ तुह पुरउ ताव न किं-पि मुणेमि ।
तह-वि हु पुच्छेऊण कि वि तुह गुण उवजीवेमि ॥ जहा -
[११९६]
विण्हु सेउ वि जिण-विसेसो वि आभासइ नणु धरणिनाहु रुठु किं देइ चोरहं । निय-गरिमहं कु-व मलिवि माणुस-सुर-नर-खयर-कुमरहं ॥ सिंजिर-भमरावलि-कुसुम कंठि खिवाविवि माल । परिणेसइ नर-नायगह सिरि-जियसत्तुहु वाल ।। ११९४. ९. क. दवल. १९९५. ७. क. सुणेमि
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