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११९२]
पंचमभवि अवराइयवृत्तंतु
[११८९]
तयणु जणणी-जणय-वुत्तंत. आयण्णिण दुक्खिउ वि ईसि हसिरु हरिनंदि-नंदणु । गयणयलह अवयरिउ मागहेण ता निवइ-रंजणु ॥ पढिउ फुडक्खरु जह - जयउ गरुय-परक्कम-सारु । अवराजिय-नामिण पयडु इहु हरिनंदि-कुमारु ॥
[११९०]
तयणु अ-सरिस-हरिस-पसरंतपुलयंचिय-सयल-तणु नियय-सार-परियण-समनिउ । तं मागह-जण-क्यणु परम-तत्तु एह ति मन्निउ ॥ ज ज्जि गवेसहुं वेल्लडी स ज्जि विलग्गी पाइ । इय चिंतंतु नराहिवइ कह-वि न माइ न ठाइ ॥
[११९१]
तह विसप्पिर गरुय-मुच्छा वि अवराजिय-नर-रयण- नाम-सवण-अमएण सत्तिय । परिवियलिय-मुच्छ-दुइ कुमरि पीइमइ झत्ति उट्ठिय ॥ जाव निरिक्खइ विहसिरह कुमरह मुहु ससि-चंगु । ता दढयरु कुसुमाउहिण सा विहुरिय सव्वंगु ॥
[११९२]
तयणु सचिविण सुमइ-नामेण निय-कुमरिहि मणु मुणिवि वंदि-बयण-विण्णाय-तत्तिण । अवराजिय-कुमर-घर- पुरउ भणिउ निय-वयण-सत्तिण ।। जह – नर-रयण कुमारियह कल-कोसल्लु निएवि । करिसु पसाउ महायरिण पाणि-ग्गहणु करेवि ॥ ११८९. २. क. दुक्खिओ, ४. क. अवभरिउ.
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