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११८४]
पंचमभवि अवराइयवृत्तंतु
[११८१] जओ
महु-महूसव-समइ चउरंगवल-पूरिय-धरणियल नियय-गरिम-परिविजिय-सुर-गिरि । अवराजिय-कुमरु किल आसि गयउ वणि तयणु महु-सिरि ॥ पेक्खंतो वि तुरंगमिहिं हरिउण मित्त-समेउ । खिविउ कह-वि हरिनंदि-निव-कुल-मंदिर-सिरि-केउ ॥
[११८२] अह नराहिवु मंति-सामंतसत्थाह-सेहिहिं सहिउ कह कहं न परियडिउ वसुहहं । अ-लहंतउ पुणु सुयह सुद्धि-मेत्तमवि अज्जु स-सहहं ॥ निसुयउ अम्हिहिं स दइउ वि निवु मंतणउं कुणंतु । जह – अवराजिय-कुमर-विणु अम्ह जिइण पज्जतु ॥
[११८३] इय न जइ लहु कुमर कत्तो वि आगंतुण ताहं मणु संठवेइ ता अज्जु नित्तुलु । हरिनंद स-दइउ गुरु- जणिण सहिउ स-पइण्ण-पच्चलु ।। कय-अंतिम-कायव्व-विहि निवडेविणु वि हवक्कि । अतिहि कयंतह होइसइ देव म अवरु वियक्कि ॥
[११८४] तयणु -- घिसि घिसि किमु अ-संवद्ध इहि जंपहिं इय मणिण चिंतयंत पीइमइ वालिय । लहु निवडिय धरणियलि गरुय-दुक्ख हुयवह-करालिय ।। सिरि-जियसत्त-नराहिवु वि सयल-सार-परिवारु । अवराजिय-वइयरु सुणिवि हुउ परिगलिय-वियारु ॥ ३८
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