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[१९७७
नेमिनाहचरिउ
[११७७] तक्क-लक्खण-गणिय-साहिच्चसिद्धंतहं सयलहं वि कलहं विसइ परमत्थु पुच्छिय । सव्वे वि अ-मुणंत पुणु गुरु-विसाय विणिमीलियच्छिय ॥ सयलंगुब्भव-सेय-जल- धारुल्लिय-नेवत्थ । चिट्ठहिं धगवग्गिय-हियय मरुय-खेय-पडिहत्थ ॥
[१९७८] एत्थ-अंतरि गुरु-विसायस्सु जियसत्तु-नराहिक पुरउ सार-परियण-समेयह । कुलएवि जंप - अहह कोवयासु निवु तुह. विसायह ॥ जम्हा सिरि-हरिनंदि-निव- कुल मंदिर-सिरि-केउ ॥ हविहइ अवराजिउ दइउ तुह धूयह सुह-हेउ ॥
[११७९] तयणु निवइण अ-कय-विक्खेवु तहिं पेसिय पवर-नर ते वि नयरि हरिनंदि-रायह । जा गच्छहि ता नियहिं 'नयर-लोउ गउ गुरु-विसायह ॥ तयणंतर विक्खुहिय-मण किं इहु इय चिंतंत । मुणहिं कुमर-अवहार-विहि निवइ-पुरउ पुच्छंत ॥
[११८०] ता विसेसिण फुरिय-संताव जियसत्तु-नराहिवह पुरउ गंतु कह-कह-वि साहहिं । जह – नाह हरिनंदि-निषुः स-पुर-जणु वि अइ-गरुय-वाहहि ॥ विहुरिय-मण-तणु-जीविउ वि चिट्टइ कह-वि धरंतु । मिरि-अवराजिय कुमार-भय- निल्लम-गुण सुमरंतु ॥ ११७७. ५. क, ख. विणमीलिय.
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