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११६८ ]
पंचमभवि भवराश्यवृत्तंतु
[११६५]
तयणु मंदर कप्प-लइय व्व निव्विग्विण अइरिण वि पंच- चिहहिं धाईहिं लालिब |
पत्त पढमि तारुण्ण वालिय ||
सह अ-सरिस-गुण-गणिण न- उण समाण वयहिं सहिहिं भणिय वि भव सुहवासु । अणुसज्ज सा पीइमइ कहमवि विसय-कहासु ॥
[११६६]
अवर-अवसर धरणि-हरिणकु
रहि धारिणि पिययमहं वीवाह - महूसवह जं मन्नहुं तियस वि कुमरिअवलोयण- परमोसहिण
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भणिउ - देव नणु पच - कालिय । उचिय-वरिण सह तुम्ह वालिय || संग-तण्ह अभिभूय । अणि मिस - लोयण हूय ॥
[११६७]
अवि य वुज्झ रयणमाल व्ब
साहियइण सज्जणिहि जण हरिसु मंदार लक्ष्य व । पक्खि निच्चु रयणियर - रेह व ।। अवलोयण- तल्लिच्छ ।
परिवड्ढr कलहिं सियजसु सव्वंगिय - रूव- सिरि
अणिमिस - लोयण-कमल-हुय मणुय वि तियस सरिच्छ ॥
[११६८]
इस दइयह वयणु निसुणेवि
जह - वच्छि वरेसु वरु अ- छइल पिउ पोढंगणहं चाईण य दारि इय
सुहाहि पीses- कुमरि-पुरउ वज्जरइ सायरु । को-वि तयणु कुमरि वि अ-कायरु | सामिउ मुक्खु बुहाण | तिन्निवि मूल दुहाण ॥
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