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पंचमभवि अबराइयवुत्तंतु
[११४१]
इय वियाणिय-उभय-वुत्तंतु खयराहिवु तुट्ठ-मणु वित्थरेण धरणियल-सारह । हरिनंदि-नरिंद-कुल- गयण-ससिहि स-हरिमु कुमारह ।। कणयमाल वियरइ तयणु केत्तियई वि दियहाणि । तीए सह सेवइ कुमरु निरुवम-विसय-मुहाणि ।।
[११४२]
सहुवसाहइ विविह-विज्जाउ मुहि-सज्जण तूसवइ ललई सयल-गिरि-काणणाइसु । सुस्मुसइ सु-गुरु-पय जयइ सययमवि इयर-अस्थिसु ॥ उचिय-किरिय-पवित्ति-परु पगइ-अदीण-सहावु । अ-दढाणुसउ कयण्णुयउ अ-विहिय-पर-संतातु ॥
[११४३]
देव-मुणिवर-विहिय-वहु-माणु रयणायर-गहिर-मण पसरु सहल-आरंभु सुहयरु । वंदंतउ जिण-वरहं विव हरिस-रोमंच-मणहरु ॥ निय-जस-धवलिय-सयल-दिसि सुयण-मणेसु वसंतु । चिट्ठइ दोगुंदुग-सुरु व गउ वि कालु अ-मुणतु ॥
[११४४]
अवर-अवसरि विहि-निओएण आकंपिय सयल महि विरस-सरिण धडहडिउ गिरि-वरु । अंधारिउ गयणयलु जलिउ लग्गु दह-दिहिहिं अंतरु ॥ दियहि वि पविसहिं वसिमि वण- सावय परिधावेउ । भग्ग-सुक्क-तरु-सिहर-ठिय वायस विरसु रसेउ ॥ ११४२. १. क, 'विज्जाओ.
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