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११३६
पंचमवि अवराइयवृत्तंतु
[११३३]
कुमरु पभणइ - कणयमालस्सु अह खयरिण किण-वि निय रयण-माल कंठह गहिप्पिणु। इह समहिय नणु कणय- मालयह वि धुवु इय भणेप्पिणु ॥ वियरिय करि अवराजियह तयणु तेण संलत्तु । नणु हविहइ जइ इयर-भवि एह तमु सरिस निरुत्तु ॥
[११३४]
तयणु खयरेण कणय-माला वि आणेप्पिणु भणिउ - नणु नियह नियह केवड्डु-अंतरु । मणि-कंचण-मालयहं अवगणेइ जइ धरणि-गोयरु ॥ मह मणि-माल अ-मुल्ल एह लुद्ध कणय-मालाए । ता टिविडंकिय-मुहु कुमरु भणइ आल-जालाए ।
[११३५]
किमिह कीरइ हंत एईए जं सुवण-सुहावहिय अवर का-वि सा कणयमालिय । अह नहयर भणहिं - नणु कत्थ अस्थि सा गुण-विसालिय ।। कुमरु पयंपइ - मह हियइ इयर भणहिं - जइ एउ । ता किह उरयलि तुम्ह नियहुं अम्हि स जय-सुह-हेउ ।
[११३६]
दइय-विरहिण विहुर-हियओ वि अह ईसि विह सिवि कुमरु भणइ - तुब्भि धुवु हंत अंधल । तिण न नियह मह हियय- ठिय वि एह सुह-दाण-पच्चल ।। इय अवराजिय-कुमर-वरु कणयमाल-विसयाहि । सुहु पावंतउ गमइ निसि नाणा-विहहिं कहाहि ॥ ११३५. ६. क. हियय. ९. अम्हि स नां सुहहेत.
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