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मिताहृवदिड
[१११३
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इह सु सत्तुय-मज्झि घय-खंडु साहामिगु सु ज्जि इहु फलिय-विडवि साहहं निवद्धउ । जं महियल-सिहि-तिलउ पुरिस-रयणु इहु इहुवलद्धउ ।। इय चिंतिवि सदाविउण लइय-भवणि सुहयम्मि । तीए सु निउ मित्तिहिं सहिउ कणयमाल-सविहम्मि ॥
[१११४]
ता खणद्धिण, ताल-स्व-पुन्छ विहसंतिहि नहयरिहि सहिउ कुमरु माहविय-लइयह । अभंतरि गयउ अह कणयमाल-कुमरीए सुहयह ॥ स-करिहिं पवरासणु रइउ तहि ठाणह पाउग्गु । इयरहं आसण सहियणिण लहु वियरिय ‘जह-जोग्गु ।
तयणु नियइण चारु-चरिएण सम्माणिण जोव्वणिण गुण-गणेण वर-स्व-रिद्धिण । तह कुमरीए गहिउ मणु तसु कुमार-रयणह स-वुद्धिण ॥ जह आराहइ स ज्जि पर सुत्तउ जग्गंतु व्व।। सिरि-अवराजिय-कुमर-वरु निय-मणु मग्गंतु व्व ॥
[१११६]
एत्थ-अंतरि करुणु बिलवंतु दढ-रज्जु-निजंतियउ चिसम-तूरि वजंति अग्गइ । अणुमग्यागमिर-बहु- संख-खयरु निरु अभउ मग्गइ ॥ आगच्छंतउ तिण पहिण कुमरह सविहि निलीणु । पढमेल्लुय-जोव्वणु पुरिसु इगु दीसंतउ दीणु ।। १११४. १. क. भंभ तरि. १११६. २. मिजंतिया ।
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