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पंचमभवि अवराइयवृत्तंतु
[११०१]
तयणु एगिण खयर-कुमरेण ललियप्पिय-नामगिण भणिउ ईसि विहसिवि - सुहग्गिय । परमेसरि रइ दइय एह तुज्झ होइहइ चंगिय ॥ ईसि वियासिय मुह-कमल कुमरु भणइ - जइ एउ। ता कि न गुरु-भत्तिहिं महि जि नाराहइ पूएउ ॥
[११०२]
तयणु विहसिवि ताल-रव-पुव्वु ललियप्पिउ वज्जरइ मन कुमार उत्तालु हविहसि । गुरु-भत्ति कुणंत रइ इह तुमं पि सयमेव पेक्खसि ॥ जमिह न भुक्खालुय-वसिण उंचर-तरु पच्चंति ।। न-वि हु छुहा-भर-पीडिय वि दुर्हि इथिहिं जेमंति ॥
[११०३]
एत्थ-अंतरि अंव-धाईए सा वाल समुल्लविय एहि एहि तुहूं वच्छि वेगिण । हउं देविण पेसविय तुरिउ तुज्झ वाहरण-कज्जिण ॥ तुह संतियउ कलायरिउ चिट्ठइ भवणि पहुत्तु । वीणा-वायणु अज्जु तई काराविसइ निरुत्तु ।।
[११०४]
अह अणंगह विहिय वर-पूय सा वाल गिहाभिमुहु चलिय जाव ता विहि-निओइण । चउराणण-नामियहिं सहिहिं कुमरु सह मित्त-विंदिण ॥ दिट्ठउ अणिमिस लोयणिहिं कुमरिहि समुहु नियंतु । पेक्खि पेक्खि पहु सामि इय तयणंतरु विण्णत्तु ।। ११०१. ५. क. होइइह, ख. होइहई,
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