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१०९६]
पंचमभवि अवराइयवुत्तंतु
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[१०९३]
तयणु वियसिय-वयणु खयरिंदु साणंदु समुल्लवइ किह मुर्णिद सो जाणियव्वउ । अह पभणइ अमियगइ सयल-सयण-सुहि-सेवियव्वउ ॥ सिरिपुर-नयरुज्जाण-वणि विमलवोह-सुहि-जुत्तु । रय-सम-खिन्नउ कयलि-हरि चिट्ठइ सुहिण पसुत्त ।
[१०९४]
परि तुह-च्चय खयर-कुमारेण एगयरिण अवहरिवि निद-विवसु निय-मित्त-सहिउ-वि। आणेप्पिणु धवलहरि तुज्झ पुरउ मुच्चिहइ एण्हि वि ॥ तसणिण समुल्लसिय अणुरायाउर-देह । पडिवज्जिसइ विवाह-विहि सयमवि तुह धुय एह ।।
[१०९५]
तयणु जइ-वि हु तरणि पच्छिमहं उग्गच्छइ जइ जलहि मुयइ नियय-मज्जाय अइरिण । जइ छत्तु हवेइ धर तियस-सिहरि पुणु डंड-रूविण ।। तह वि न मुणि-वर-भासियउ वितह-सरूवु हवेइ । इय चिंतिरु खयरिंदु मुणि- पय हरिसिण पणमेइ ॥
[१०९६] __अह गहे विणु गुरुहु आसीस खयराहिवु निय-नयरि गयउ जाव ता सुकय-जोगिण । आयण्णिवि अमियगइ- समण-वयणु लहु वाउवेगिण ।। विज्जाहरिण हरेवि तुहुं इह आणिउ जय-सार । इय अवराहु खमिज्ज इहु सिरि-हरिनंदि-कुमार ॥ १०९६. ९. क. हिरिनंदिकुमारू,
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