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१०६4]
पंचमभवि, अबराइयवुत्तंतु
[१०८५]
ता विसे सिण विम्हयावन अवराजिय-अणुमइण परिकहेइ सो वुड्ढ-नहयरु । सयलो विहु पत्थुयउ कुमर-रयण-अवहरण-वइयरु ॥ जह-सारय-ससि-विमल-जस धवलिय-दिसि-विवरस्सु । अंसुमालि-अभिहाणयह एयह खयर-वरस्सु ॥
[१०८६]
मुहय-सीलिण चारु-चरिएण सल हिज्ज-उज्जल-जसिण विहिय-सोह गुण-रयण-हारिण । सु-सिलिट्ठ-तणु-संचइण पत्त-कित्ति गुरुयण-पसाइण ॥ सयलंतेउर-पवर-पय- पाविय-गरुय-पइट्ट । दइय पहावइ नाम तहि पुणु निय-गुणिहिं गरिह ॥
[१०८७]
विमल-लक्खण पवर-तारुण्ण अ-सवण्ण-गुण-मणि-जलहि कणय माल-अभिहाण-पयडिय । हर-हास-समुल्लसिय- धम्म-कम्म-वावार-विनडिय॥ भण्णंती विह परिणयण- कारणि वि मुहारंभ । चिहइ वहुयहं नंदणहं उवरि धृय गय-डंभ ॥
[१०८८] ___ इय स-धृयइ विसय-सुह-कह वि अकुणंतिइ तहि जणणि- जणय चिंतमावडिय चिट्टई । जा ताव नहंग मिण किण-वि भणिउ किंकुणह कट्टई ॥ चिइ कंचणपुर-नयर- उज्जाणम्मि पहुत्तु । अमियगइ त्ति पसिद्ध इगु चारण-समणु पवित्तु ॥
१०८५. ८. क. मह. ख. पह.
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