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१०८०]
पंचमभवि अबराइयवृत्तंतु
[१०७७]
खणु नियच्छइ विविह-नहाई खणु निसुणइ गेय-झुणि खणु पियाउ आलवइ स-हरिसु । खणु कुमरिण सहुँ ललइ देइ दाणु मागहहं अ-सरिसु ॥ खणु खणु आवाणय-महिहिं आसव-पाणु करेइ । खणु सह निय-अंतेउरिहिं अंदोलइण ललेइ ।
___ [१०७८]
अह परिस्सम-खिन्नु दिण-इंदसंताव-विणोय-कडू धरणि-नाहु पणइणि-समन्निउ । जल-कीलह करण-कई सरि विसेइ बंदियण-वन्निउ ॥ तह वहु-विहिहि तर्हि जि वणि परियण-जणियाणंदु । सिरि-हरिनंदि-नराहिवइ- कुल-गयणंगण-चंदु ॥
[१०७९]
सुइरु कीलिवि स-मय-तरुणियणमण-महुयर-कुल-कमल दलिय-सयल-माणिणि-मडप्फरु । वियइल्ल-चंपय-कुसुम- दाम-रइय-सिंगार-सुंदरु ॥ वार-विलासिणि-सय-सहिउ अन्नयरम्मि सरम्मि । परिकीलिवि मज्जिर-तरुणि- अंगराय-मुहयम्मि ॥
[१०८०]
कय-विलेवणु गहिय-तंवोलु वहु-मागह-घुट-जसु असम-दाण-तूसविय-मग्गणु । सारय-ससि-कर-पसर- चारु-चरिय-रंजविय-सज्जणु ॥ कुसुमाहरण-विहूसियउ कय-असरिस-सिंगारु । खणु कयली-हरि वीसमइ सिरि-हरिनंदि-कुमारु ॥ १०७७. १. क. नहाइ; ८. क. मह. १.८०. १. क. विलेविणु,
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