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१०७२]
पंचमभवि अवराइयवृत्तंतु
[१०६९] तयणु विह सिरि निव-सहा-लोइ परितुइ वंदि-यणि ईसि लज्जमाणए दइयए । उज्जाणिय-माणविहिं हरिसिएहि सुहि-वग्गि मुहियइ ।। तुरिउ निउत्तिहि माणुसिहि निय-नयरम्मि असेसि । घोसाविउ नर-नायगिण जह - महु-ऊसव-रेसि ॥
[१०७०] सयल-लोगिण सयल-रिद्धीए सयलेण वि निय-वलिण महुविलास-अभिहाणि काणणि । आहरण-विहूसिउण सयल-भुवण-आणंद-कारणि ॥ गोस-समइ सव्वायरिण आगंतव्वु अवस्सु । जयकुंजरु पुणु पेसियउ अवराजिय-कुमरस्सु ।।
[१०७१] तयणु विरइय-असम-सिंगारु सिरि संठिय-वर-मउडु नियय-तेय-उवहसिय-दिणयरु । निय-मित्तिण परियरिउ मुह-विसेस-निज्जिय-पुरंदरु ॥ मागह-निवहुग्घुट्ट-जसु भत्त-विसेसिअ-मूहु । सिरि-अवराजिय-कुमर-वरु जयकुंजरि आरूदु ।
[१०७२] चलिउ निवइण सहिउ उज्जाणवण-सम्मुहु नयर-जण- जणिय-असम-संतोस-पगरिसु । वियरंतउ वंदियहं दाणु सुहिहिं सम्माणु अ-सरिसु ॥ मंगल-तुरिहि पसरियहि संखिहि वज्जंतेहिं । सुप्पह-निव-अवराजियहं जसिहि य गिज्जतेहि ॥
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