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नेमिनाहचरिउ
[१०४९] जं च जइयहं जेम्व भवियव्यु तं तइयहं तिम्ब हवइ नत्थि एत्थ पडिमल्लु पाइण । इय चिंतिरि कुमर-वरि विहिय-सेवि मित्तेण नियइण ॥ वार-पुरंघिहिं विलविरह अपणडा-पिय-रेसि । कामलयहं पभणिउ कह-वि स-विहिहिं सचिवहं तेसि ।।
[१०५०] - सम्मु न सुणउं किंतु इह के-वि निय-पुण्ण-पगरिस-विजिय- भुवण-तरुण सव्वंग-सुंदर । दो चिट्टहिं नर-रयण भुंजमाण-विसय-मुह मणहर ॥
ओसहि-सिद्ध व नहयर व तियसासुर-कुमर व्य । इय ति जि सदावह तुरिउ मा चिट्ठह सुन्न व्व ॥
[१०५१]
तयणु नणु एहु जुत्तु जुत्तु त्ति परिजंपिर सचिव लहु पुरउ गंतु तमु कुमर-रयणह । अइ-करुणु समुल्लवहिं कुण, कुणसु लहु दीण-वयणह ।। एत्तिय-मेत्तह सयलह वि लोयह जीविय-रक्ख ।। नर-नायग-जीवावणिण तुहुं नर-रयण सु-दक्ख ॥
[१०५२]
विमलवोहिण सहिउ कुमरो वि सचिविंद-अणुव्वइउ गयउ सविहि सुप्पह-नरिंदह । तयणतरु पुरउ निव- सचिव-सेट्ठि-सामंत-विंदह ॥ नणु मा तुम्हि अ-सुहु कुणहु निवइ वेल एह मज्झ ।
जम्हा एह मज्झ वि निवइ- पीड अच्छि सुह-सज्झ ॥ १०५१. क. सुदखु. At the end of st. 1052 (mss 1050) : ग्रंथाग्रं ३०.०,
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