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१०४८] पंचमभवि अवराइयवृत्तंतु
२६३ [१०४५]
इय करेविणु सुद्धि परमत्थु मह साहसु तुरिउ तुहुं तयणु विमलवोहिण स-बुद्धिण । परियडिउण पुर-पहिहि पणिहि सयल वुझिवि खणद्धिण ।। अवराजिय-कुमरह पुरउ कहिउ झत्ति आगंतु । जह - अवहिय-मणु खणु हविवि निमुणसु पहु वुत्तंतु ॥
[१०४६]
इह हि निहणिय-सयल-पडिवक्खु विलसंत-कित्ति-प्पसरु फुरिय-गरुय-सामत्थ-वित्थरु । पसरंत-दुन्नय-दलणु नमिर-सरणु सव्वंग सुंदरु ॥ अहव किमन्निण सयल-गुण- रयण-समूह-निहाणु । आसि वसुंधर-सिरि-तिलउ निवु सुप्पह-अभिहाणु ॥
[१०४७] ___ सो उ केण-वि विहि-निओगेण पडिहारिहि वाउलिहि रिउ-निउत्त-घायगिण पुरिसिण । असि-घेणुहूं आहयउ मम्म-ठाणि ता विज्ज-सहसिण ॥ मिलिएण वि सविह-ट्ठिइण अ-पयासिय-परिताणु । चिट्ठइ मुक्कु वसुंधरहं कंठ-पइट्ठिय-पाणु ॥
[१०४८] गहल-गुंदलिहूउ पुर-लोउ तिण महियलि परियडइ निवइ-तणय-विरहे य सयलि वि। परिचिट्ठहिं हय-हियय रज्ज-धरह विशु दुहिय सचिव वि ॥ पत्थंतरि घिसि घिसि विहिहि वलिउ वि न विछट्टेइ । ता विहल च्चिय जणु स-वल- अभिमाणिण बट्टेइ ॥
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