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१०४०
पंचमभवि अवराइयवृत्तंतु
[१०३७]
ता कुमारिण भणिउ कह-कह-वि नणु साहउं किमिह हउं जेण सरिस-मुह-दुक्ख माणसु । विच्छोहिउ अज्जु महु नहयरिंद इय कह-वि आणम् ।। सारय-रयणीयर-विमल- गुरु-गुण-रयण-निहाणु । सचिव-तण्हु मज्झ मुहि विमलवोह-अभिहाणु ॥
[१०३८]
अह तुरंतिण खयर-नाहेण आणत्त तुहाणयण- हेउ अम्हि सचिविंद-नंदण । ता हरिमुब्भव-जलिण भरिय सचिव-नंदणह लोयण ।। ता नहयर-जुयलिण कुमर- मित्तु गहेविणु सिन्धु । अवराजिय कुमरह पुरउ निउ गयणिण निविग्धु ॥
[१०३९]
ता परुप्परु विहिय-संलावपरिवियलिय-विरह-दुह- फुरिय-हरिस-रोमंच-अंचिय । खयरिंद-निउत्तइहिं तेसि दोणि आसणई संचिय ॥ तयणंतरु खयराहि विण करिवि विविह-पडिबत्ति । कुमरह कमलिणि-कुमुइणिउ वियरिय दु-वि दुहिय त्ति ॥
[१०४०] ___ तयणु कइवय दियह तर्हि ठाउ उवभुंजिरु विसय-सुह ताहिं दुहि-वि सह खयर-तरुणिहिं । पुव्वं व विमोइउण अप्पु मित्त-परियरिउ धरणिहि ॥ परियडमाणु अणुक्कमिण भुवणन्भहिय-सिरिम्मि। पत्तउ अवराजिय-कुमरु सिरिमंदिर-नयरम्मि ॥ १०३७. ६. क. सायर.
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