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१००८
पंचमभवि अवराइय वृत्तंतु
[१००५]
गयणवल्लह-नयर-नाहस्सु सिरिसेण-खयराहिवह सुइण सूरकंताभिहाणिण । अवलोइय तयणु परिविष्फुरंत-अणुराय-पसरिण ॥ अप्पिण परिणवि बहु-विहिहिं मग्गिय परिणयणत्थु । न-उण कह-चि अभुवगमइ भणिय वि पत्थुय-अत्थु ॥
[१००६]
कुणइ पुणु निय-जणणि-जणयाई पच्चक्खु पइण्ण जह जइ न होइ हरिनंदि-नंदणु । अवराजिउ दइउ मह ता सरीरि लग्गइ हुयासणु ॥ इय निमुणिवि सिरिसेण-सुउ दढ-वद्धाहिनिवेसु । एह मई परिणेयव्व इय . कुणइ पइण्ण-विसेसु ॥
[१००७]
तयणु साहइ विविह-विज्जाउ कुलए वि-चलणहं नमइ भमइ कइण ओसहि-विसेसहं । तमु परियणु उवयरइ देहं दाणु दूइहिं अ-सेसहं ॥ न-उण कई-चि-वि संघडइ रयणमाल तणुयंगि । अह खयराहिव-अंगरुहु हरिवि करिवि उच्छंगि।
[१००८]
मयण-सवरिण हणिय-सव्वंगु समसाण-मज्झ-ट्ठियहि पुरउ पत्तु चामुंड-देविहि । तयणतरु निय-मुहिण पुणु वि पुणु वि वहु-भेय-वयणिहिं ।। पयडिवि चाडय-सय-सहस संगम-सुहु मग्गेइ । तरुणि भणइ - मह तसु विरहि जइ हुयवहु लग्गेइ ।। १००५. ८. अनुवगमइ १००७. १. क. विज्जाओ. १००८. १. हरिय.
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